Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

बुधवार, 30 मार्च 2011

आधा जीवन

काल समूचा दिवस रात्रि में बंट जाता है
सोचो आधा जीवन सोने में जाता है !

आधा जीवन गुजरा बचपन और बुढ़ापा
कर्म के लिए चौथाई जीवन आता है !

आधा जीवन आधे मन से अगर जिया तो
आधे का आधा जीवन ही रह जाता है !

जीवन में यदि मित्र बना पाए न कोई
मीत बिना जीवन फिर आधा हो जाता है !

दुनिया रखे - याद किया न कुछ भी ऐसा
क्या पूरा क्या आधा - बस आता जाता है !

1 टिप्पणी: