Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

छंदों में मात्राओं का विज्ञान

हम कवितायेँ लिखते और पढ़ते हैं . कुछ कवितायेँ छंद बद्ध होती हैं तो कोई स्वछन्द . छंद बद्ध कवितायेँ किसी नियम में बंधी होती है, जिसकी वजह से उस कविता का पढना एक विशेष लयात्मकता में ढल जाता है ; जब कभी कविता अपने छंद का नियम तोडती हैं , तो उसे उस लय में पढ़ पाना मुश्किल होता है. यहाँ हम चर्चा करेंगे सिर्फ छंद बद्ध कविताओं की , जैसे की दोहा, चौपाई , सोरठा , ग़जल वैगरह. इसके अलावा भी बहुत से अपरिभाषित छंद हो सकते हैं, लेकिन आवश्यता होती है , उस छंद की नियम बद्धता की.
घबराइए मत , मैं कोई बहुत मुश्किल चर्चा नहीं कर रहा हूँ , बल्कि एक मुश्किल विषय को आसानी से समझ पाने का नुस्खा बता रहा हूँ . कविता, ग़जल, गीत - सब का एक मीटर होता है . और उस मीटर का नाप होता है मात्राएँ . किस छंद में कितनी मात्राएँ होती हैं, ये निश्चित होता है . उर्दू कविता में मात्राओं के इस मीटर का नाम बहर होता है कवि या शायर जाने अनजाने उन मात्राओं की गिनती को समान रखता है . आइये इस विज्ञान को समझाने का प्रयत्न करते हैं उदाहरण के द्वारा -

एक दोहा लेते हैं -

रहिमन देख बड़ेन को , लघु न दीजिये डारि !
जहाँ काम आवे सुई , कहाँ करे तलवारि !!

आइये इसकी मात्राओं की गिनती करें . गिनती के नियम हैं -

१. प्रत्येक बिना मात्रा का अक्षर = १ मात्रा ; जैसे - र


२. प्रत्येक आ की मात्रा वाला अक्षर = २ मात्रा ; जैसे का


३. प्रत्येक छोटी इ की मात्रा वाला अक्षर = १ मात्रा ; जैसे रि


४. प्रत्येक बड़ी ई की मात्रा वाला अक्षर = २ मात्र ; जैसे दी


५. प्रत्येक छोटे उ की मात्रा वाला अक्षर = १ मात्रा ; जैसे सु


६. प्रत्येक बड़े ऊ की मात्रा वाला अक्षर = २ मात्रा ; जैसे पू


७. प्रत्येक ए की मात्रा वाला अक्षर = १ या २ मात्रा@ ; जैसे डे


८. प्रत्येक ऐ की मात्रा वाला अक्षर = २ मात्रा ; जैसे जै


९. प्रत्येक ओ की मात्रा वाला अक्षर = २ मात्रा ; जैसे को


१०. प्रत्येक औ की मात्रा वाला अक्षर = २ मात्रा ; जैसे लौ


११. प्रत्येक बिंदी वाला अक्षर = २ मात्रा ; जैसे जं


१२. प्रत्येक विसर्ग वाला अक्षर = २ मात्रा ; जैसे क:


१३. प्रत्येक डेढ़ अक्षरों का योग = २ मात्रा ; जैसे ल्ल

[@ विशेष : साधारणतया इन मात्राओं की गिनती ऊपर दिए नियमों के अनुसार होती है, लेकिन अपवाद भी होते हैं. वास्तव में मात्राओं का सम्बन्ध प्रत्येक अक्षर के उच्चारण से सम्बन्ध रखता है. इसलिए बड़ी मात्राओं (दीर्घ मात्राएँ ) को २ मात्रा मानते हैं और छोटी मात्राओं ( लघु मात्राएँ ) को १ मात्रा मानते हैं . लेकिन कई बार बड़ी मात्राओं को पढने में जल्दी पढ़ा जाता है ताकि कविता की लय बनी रहे; उसी तरह कभी कभी छोटी मात्राओं पर भी जरा रुक के पढना पड़ता है खास कर ऐ की मात्र में ये अक्सर होता है ; ऐसी स्थिति में मात्राओं के योग में ऊपर लिखे नियमों से भिन्नता आने की सम्भावना है .समझाने के लिए जहाँ भी छोटी ऐ की मात्र २ गिनी जायेगी उसे हम रेखांकित कर देंगे .ऊपर लिखे नियमों को हम आधार मान सकते हैं . ]


आइये इन नियमो के आधार पर जरा गिन कर देखें की ऊपर लिखे रहीम के दोहे में कितनी मात्राएँ हैं . दोहे में चार पद है . पहले और तीसरे पद में एक अर्ध विराम यानि कोमा है ; दुसरे और अंतिम पद के बाद पूर्ण विराम है . हम मात्रा गिनेंगे पद के अनुसार . दोहे को अक्षर के अनुसार जरा बाँट देते हैं , इस प्रकार -

र हि म न दे ख ब ड़े न को , ल घु न दी जि ये डा रि !


ज हाँ का म आ वे सु ई , क हाँ क रे त ल वा रि !!

अब हर अक्षर की मात्रा तय करते हैं और उस अक्षर के ऊपर लिख देते हैं , ऊपर लिखे नियमों के अनुसार -


१   १ १ १   १ १    १ २ १ २ ( कुल योग =१३ मात्रा )


र हि म न दे ख ब ड़े न को ,


१ १ १     २ १    २   २    १       ( कुल योग =११ मात्रा)


ल घु न दी जि ये डा रि !


१   २   २    १   २   २   १   २       ( कुल योग =१३ मात्रा )


ज हाँ का म आ वे सु ई ,


१    २ १ २ १    १ २   १           ( कुल योग =११ मात्रा )


क हाँ क रे त ल वा रि !!

इस उदाहरण से ये बात समझ में आ गयी कि किसी भी दोहे छंद में पहले और तीसरे पद में मात्राओं का योग १३ होगा और दुसरे और चौथे पद की मात्राओं का योग ११ होगा . दूसरी बात ये की दूसरे और चौथे पदों में तुकबंदी होती होती है जैसे की यहाँ डारि और वारि . आइये एक और दोहा लेकर उस पर इस बात को जांच कर देखें . कबीर का एक प्रसिद्द दोहा -

काकड़ पाथर जोर के, मसजिद लई बनाय !
ता चढ़ मुल्ला बांग दे, क्या बहिरा हुआ खुदाय !!

आइये उसी प्रकार विच्छेद करते हैं इस दोहे का भी और गिनते हैं मात्राओं को -

२    १ १   २   १ १   २ १   २      ( कुल योग =१३ मात्रा )


का क ड़ पा थ र जो र के,


१   १   १    १ १ २   १ २   १      ( कुल योग =११ मात्रा )


म स जि द ल ई ब ना य !


२    १ १   १   २     २    २ २        ( कुल योग =१३ मात्रा )


ता च ढ़ मु ल्ला बां ग दे ,


  २    १ १    २ १ २     १ २   १   ( कुल योग =११ मात्रा )


क्या ब हि रा हु आ खु दा य !!

इस प्रकार पुष्टि हो गयी हमारी गणना की . एक उदाहरण एक चौपाई का लेकर गिनें . जैसा की नाम से पता चलता है चौपाई, इस छंद में भी चार पद होते हैं , विशेषता ये है कि इस छंद में चारों पदों की मात्राओं का योग एक समान होता है . हम सब के लिए चौपाई का अर्थ होता है तुलसीदासजी की रामचरितमानस . उदाहरण लेते हैं उनकी रचना रामचरितमानस से -

सुनत राम अभिषेक सुहावा । बाज गहागह अवध बधावा ॥
राम सीय तन सगुन जनाए । फरकहिं मंगल अंग सुहाए ॥२॥

और अब मात्राओं की गिनती -

१   १ १    २ १ १    १    २ १    १ २ २         ( कुल योग =१६ मात्रा )


सु न त रा म अ भि षे क सु हा वा ।


२   १    १ २ १   १ १    १ १ १ २    २           ( कुल योग =१६ मात्रा )


बा ज ग हा ग ह अ व ध ब धा वा ॥


२   १   २   १   १ १   १   १ १   १   २ २            ( कुल योग =१६ मात्रा )


रा म सी य त न स गु न ज ना ए ।


१   १ १    १ २   १ १    २ १   १ २ २             ( कुल योग =१६ मात्रा )


फ र क हिं मं ग ल अं ग सु हा ए ॥२॥

इस उदहारण से हम दो बातें सीखते हैं , पहली कि चौपाई में भी चार पद होते हैं और हर पद कि मात्राओं का योग हमेशा १६ होता है . दूसरी बात ये कि तुकबंदी पहले और दूसरे पदों में तथा तीसरे और चौथे पदों में होती है . आइये एक और उदहारण से इस बात को देखें -

जो मुनीस जेहि आयसु दीन्हा । सो तेहिं काजु प्रथम जनु कीन्हा ॥
बिप्र साधु सुर पूजत राजा । करत राम हित मंगल काजा ॥१॥


और आइये अब गिने मात्राओं को -

२     १ २    १ १    १   २    १ १    २    २       ( कुल योग =१६ मात्रा )


जो मु नी स जे हि आ य सु दी न्हा ।


२    १   १   २    १   १ १ १   १   १    २    २    ( कुल योग =१६ मात्रा )


सो ते हिं का जु प्र थ म ज नु की न्हा ॥


१   २    २   १   १ १  २   १ १   २   २             ( कुल योग =१६ मात्रा )


बि प्र सा धु सु र पू ज त रा जा ।


१   १ १   २ १   १   १   २   १   १    २   २       ( कुल योग =१६ मात्रा )


क र त रा म हि त मं ग ल का जा ॥१॥

[ ऊपर दिए उदहारण में दो स्थानों पर ए की मात्रा है, लेकिन उसका उच्चारण बहुत जल्दी बोल कर होता है; शब्द हैं जेहि और तेहिं , इसलिए दोनों स्थानों पर जे और ते की एक मात्रा गिनी है. दोनों ऐसी मात्राओं को अलग रंग में रेखांकित कर के बताया है .]

इसी तरह और किसी कविता का मीटर भी हम समझ सकते हैं . एक उदाहरण लेते हैं एक छंद बद्ध कविता का . दुष्यंत कुमार की एक मशहूर रचना के पहले और आखिरी बंद -

हो चुकी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकालनी चाहिए !


मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए

और अब मात्राओं की जल्द गिनती -

२   १+२ २  २+१ १+२+१ २    १+१+१+२ २+१+१     (= २५ )
हो चुकी है पीर    पर्वत    सी पिघलनी     चाहिए


१+१ १+२+१+१ १   २+२ २+२  १+१+१+२ २+१+१   (=२५)
इस    हिमालय    से कोई गंगा निकलनी    चाहिए !


१+२ २+२   १ १+२ २   १+२ २+२ २ १+२                (=२५)
मेरे    सीने में नहीं तो तेरे   सीने में सही


२   १+२ २    २+१ २+१+१ २+१ १+१+२ २+१+१       (=२५)
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी    चाहिए

इस प्रकार हम समझ सकते हैं की कविता चाहे किसी भी छंद की हो , उसका मीटर या बहर ही उसे गेय या लयात्मक बनाता  है . एक भी मात्रा की गड़बड़ होने से उसमे एक लंगड़ापन आ जाएगा. जब आप भी कोई कविता लिखें तो आप देख लेवें की आपकी मात्राओं की गणना  में समानता है या नहीं . या फिर आपको अपनी किसी रचना को ढंग से पढने में कठिनाई आ रही हो तो एक बार मात्राओं को गिन कर देख लेवें की कहीं मात्राओं में भिन्नता तो नहीं .

ये सारी जानकारी आपको मैं कुछ उपलब्ध स्त्रोत्रों से और कुछ अभ्यास के आधार पर दे रहन हूँ . त्रुटि पायें तो कृपया टिपण्णी करें .

17 टिप्‍पणियां:

  1. दोहों के विपरित सोरठों में मात्राएं 11:13,11:13 होती है।

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    1. वर्णगण तो संस्कृत में आम प्रचलन में है। मात्रागणों के विषय में कुछ जानकारी दे सकते हैं? कला किसे कहते हैं? चतुष्कल, त्रिकल वग़ैरह क्या हैं?

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  2. अच्‍छी जानकारी दे रहे हैं आप। सभी के काम आएगी। बधाई।

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  3. प्रिय महेंद्र,
    यार! तुमने आज फिर मुझे स्कूल के हिन्दी पाठ्यक्रम के दूसरे पर्चे की याद दिला दी. वो हिन्दी सहित्य
    के दोहों, सोरठो की मात्राओं को गिनने में शायद हम कुछ ही लोग थे जिन्हें इस पाठ में मज़ा आता था, हम दोनों के अलावा मुझे जो तीसरा नाम याद आता है वो योगेश डागा का है.

    मैं समझ सकता हूँ कि कुछ तुम्हारे ऐसे भी पाठक होंगे जिन्हें शायद कविता को ले में पढ़ने में मुश्किल होती होगी. बिना सही लय के कविता "कविता" नहीं रह जाती है और शायद उसे गद्य की तरह भी पढ़ कर उसका सही रस नहीं लिया जा सकता है.

    तुम्हारी यह कोशिश ऐसे लोगों को तुम्हारी और अन्य रचयिताओं की रचनाओं को पढ़ने का सही आनंद देगी.

    शशि मिमानी

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  4. प्रिय शशि,
    एक बार फिर स्कूल के दिनों में पहुँच गएँ हैं हम लोग . उस समय ये चीजें पढाई का बोझ समझ के पढ़ते थे , आज लगता है की यही ज्ञान है. धन्यवाद .
    महेंद्र

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  5. kyaa baat hai jahaan naa pahuchen ravi vahaan ja phunche kavi , bahut hi upyogi jaankariyaan itanaa gyaan kahan chhupaa kar rakhate hain bhaai

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  6. सही पर गलती आधी मात्रा के कारण भी होती है, सुंदर

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  7. शुक्रिया इस जानकारी के लिये.

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  8. वर्णगण तो संस्कृत में आम प्रचलन में है। मात्रागणों के विषय में कुछ जानकारी दे सकते हैं? कला किसे कहते हैं? चतुष्कल, त्रिकल वग़ैरह क्या हैं?

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  9. bahut sundar jankari.... aadarniya ji...nmn

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  10. बहुत ही सारगर्भित जानकारी...👍

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  11. धन्यवाद जानकारी देने के लिए

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  12. बहुत सही वर्णन। इस ब्लॉग के लिए आभार। आपने ये 2010 में लिखा और आज 10 साल बाद भी ये पढ़ा ज रहा है। बहुत बधाई ।

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  13. बहुत बढ़िया। एकदम सही जानकारी। आपने इस ब्लॉग को 2010 में लिखा था और आज 2020 में भी ये पढा जा रहा है, इसके लिए आपको बधाई। ऐसे ज्ञानवर्धक लेख लिखते रहा कीजिए।

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  14. साधु ऐसा चाहिए, 12
    जैसा सूप सुभाय, 11
    सार-सार को गहि रहै, 13
    थोथा देई उड़ाय। 13

    Matra ki Ginti Samajh Nahin Aaa Rahi.

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