Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

बुधवार, 19 अप्रैल 2023

बस ख्वामख्वाह

 बस ख्वामख्वाह      



जिंदगी जिए जा रहे , बस ख्वामख्वाह 

सांस भी लिए जा रहे , बस ख्वामख्वाह


खा लिए , फिर सो लिए,  फिर उठ लिए मगर 

खाने की फ़िक्र ही में रहे , बस ख्वामख्वाह


हर रोज बुढ़ापा हमारे आता है नजदीक 

जीने को वक़्त खोज रहे , बस ख्वामख्वाह


रिश्ते बने , कुछ टूट गए , छूट गए कुछ 

रिश्तों के लिए मर रहें हैं , बस ख्वामख्वाह


पैसे थे कम , थोड़े थे ग़म , फिर खूब कमाए 

पैसे भी और  ग़म भी हमने , बस ख्वामख्वाह

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