Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

बुधवार, 5 मई 2021

रात है कहर कहर




जागते पहर पहर 

रात है कहर कहर 

क्यूँ न नज़र आ रही 

इक नयी सहर सहर !


सुख बने सपन सभी 

दुःख भरे नयन सभी 

जिंदगी न जाने क्यों 

है गयी ठहर ठहर  !


कंठ नीले पड़  गए 

होंठ जैसे जड़ गए 

अमृतों की चाह  में 

पी रहे जहर जहर !


ये सभी  चमक  दमक 

सिंधु में भरा नमक 

दुःख और दर्द की 

उठ रही लहर लहर !

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