Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

रविवार, 19 मई 2019

पुलठी आवन जावन

पुलठी आवन  जावन

आज मन करता है चलो बच्चा बन जाएँ
एक दिन के लिए बुजुर्गियत का मुलम्मा उतार  फेंके
और अपने आप से सच्चा बन जाएँ !
याद है न , गाँव में जोहड़ के किनारे खड़ा वो नीम का पेड़
अब भी खड़ा है ,
थोड़ा बूढा हुआ है , लेकिन सीधा खड़ा है
चलो एक बार फिर से गलबहियां डालें
उस बालसखा के  गिर्द
और उसके आस पास पड़ी पकी  हुयी
निमोलियों को चुन के
मुंह में दबा कर मीठा रस पियें
मेरे बच्चे शायद विश्वास भी नहीं करेंगे
की नीम के पेड़ पर भी मिठाइयां उगती हैं !

और फिर चलें अपने मोहल्ले में
जहाँ अपनी हवेली के दोनों तरफ की गलियां
बन जाती हमारा अलग अलग क्षेत्र
दो टोलियां का !
और फिर टाइमर सेट हो  जाता था
हमारे मष्तिष्क में -
जिसके मिनट सेकेण्ड हमें पता नहीं होता था
फिर भी घंटी एक साथ बजती थी दोनों टोलियों में !

और घण्टी बजने के पहले का समय था
भाग भाग कर
चॉक , कोयला , सूखी मिटटी वैगरह से
ढेर सारी  छोटी छोटी समानांतर लाइने खींचने का
ऐसी जगह जहाँ कोई आसानी से ढूंढ न पाए
दरवाजों की सांकल पर,  हल की नोक पर
बाहर पड़ी किसी की बाल्टी पर
पथ्थर के टुकड़े पर , यहाँ तक की बैलों के सींगों पर
और फिर सब हाथ रुक जाते थे , एक उद्घोष के साथ
पुलठी आवन  जावन  , पुलठी आवन  जावन

और इस जयघोष के साथ
दोनों दल बदल लेते थे अपना अपना क्षेत्र
और फिर सिलसिला  शुरू होता
उतनी ही समय सीमा में एक दूसरे के छुपे हुए खजानों को खोजना
खोज कर उन समनांतर रेखाओं को काटना - एक आड़ी  रेखा से

और फिर वही जयघोष - पुलठी आवन  जावन
इस बार दोनों दल एक साथ प्रवेश करते थे
एक के बाद दुसरे क्षेत्र में
हर दल वाला दिखता था अपने छुपे हुए खजाने की रेखाएं
कटी हुयी रेखाओं का मतलब - लुटा  हुआ खजाना
अनकटी रेखाएँ यानी सुरक्षित खजाना
और खजाने की गणना होती रेखाओं की गिनती से
जिस दल का बड़ा खजाना सुरक्षित
वही दल विजेता उस दिन का !

सच कहता हूँ ,
आज के बड़े बड़े गोल्फ क्लब में
भरपूर पैसे खर्च के
वो आनन्द नहीं आता
जो आता था , उस बेफिक्र बचपन के 
मुफ्त के खेल - पुलठी आवन  जावन
का विजेता बनने में

महंगी महँगी पेस्ट्री उतनी स्वाद नहीं होती
जितना उस बालसखा नीम की
प्रेम से खिलाई हुयी वो मीठी निमोलियाँ !
यादों में ही सही - बच्चा तो हो गया मैं !

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