कुछ मौत के व्यापारी
खरीदने आये थे मौत
समुद्र की राह से
खरीदनी थी मौत ,
तबाही ,हाहाकार
चीत्कार, आहें
कीमत भी थी मौत
खुद अपनी
पागल कुत्तों जैसी
दरअसल
वो आदमी नहीं थे
वो थे हथियार
एक ऐसे जूनून के
जो बांटता है
सिर्फ नफरत
नफरत
कभी मजहब के नाम पर
कभी मुल्क के नाम पर
वो अब भी नहीं रुके
तैयार कर रहें और हथियार
और मौत के सौदागर
ये कह कर की
पहले वाले अपनी शहादत का
इनाम पा रहे हैं - जन्नत में
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