Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

सोमवार, 15 अगस्त 2016

मैं कैसे तुम्हे मनाऊं मेरी आज़ादी !





मैं किस मुंह से आज़ादी तेरी बात करूँ

मैं कैसे मानूँ देश मेरा आज़ाद है अब !

गोरे  अंग्रेजों से तो हम आज़ाद हुए

काले अंग्रेजों से भी तो  बर्बाद हैं अब !



जिस मज़हब वाले मुद्दे पर था देश बंटा

वो ही मज़हब वाला झगड़ा फिर शुरू हुआ

संसद  पर हमले करने वाला अफ़ज़ल वो

क्योंकर इक हिस्से का वो जाने गुरु हुआ ?



मुम्बई का करने को  विनाश जो आया था

कुत्ता था , खुद को टाइगर वो कहता है 

उसके भी चाहने वाले हैं इस भारत में

जो  पकिस्तान में छिप चूहे सा रहता है !



गौरक्षा की है बात उठाना जुर्म यहाँ

गौहत्या अब इस देश में बहुत जरूरी है

भारत माँ  को माता कहने पर कष्ट यहाँ

इस देश को अपना कहना भी मजबूरी है !





आतंकवाद घुस कर बैठा हर कोने में

जैसे शोणित में मिले हुए कीटाणु से

कैंसर बन कर इस देश की जड़ को काट रहे

कब फूट पड़े बन कर बम वो परमाणु से !



खुद को आज़ादी के मालिक कहने वाले

क़दमों में पड़े हुये हैं देखो इटली के

जब चूस चुके हैं देश की सत्ता का  सब रस

अब भी हैं देखो चाट रहें हैं  गुठली वे



इस देश में नहीं सुरक्षित देखो नारी अब

डर डर  कर रहती बहुसंख्यक जो आबादी

मैं चाहूँ भी तो कैसे झंडा फहराऊं

मैं कैसे तुम्हे मनाऊं मेरी आज़ादी !


रविवार, 7 अगस्त 2016

मेरी दोस्ती मेरा प्यार


रिश्ते वो हैं जो जन्म के कारण बनते हैं

दोस्ती वो जो जीवन के कारण  बनती है



सरे राह चलते कोई मिल गया

दो चार बाते हुयी

कुछ मैंने कही उसने सुनी

कुछ उसने कही मैंने सुनी

और अनजाने ही एक दोस्ती शुरू हो गयी !



मैं हिन्दू था , वो मुसलमान निकला

पूर्वाग्रह था - मुसलमान अच्छे नहीं होते

फिर भी वो अच्छा लगा

शायद उसके भी मन में ऐसा था कुछ

फिर भी मैं उसे अच्छा लगा



उसे भी फ़िल्में , उपन्यास और कविताएँ पसंद थी

और मुझे भी

हमने साथ साथ न जाने कितनी फ़िल्में देखी

कितना संगीत सुना

कितने उपन्यास आपस में बदले

दोस्ती और गहरी होती गयी



उसने ईद पर मुझे बुलाया

मैं झिझका ; हमारा खाना पीना जो अलग था

उसे मेरी झिझक का पता था

उसने मेरे लिए अलग बर्तन मंगाये

शुद्ध शाकाहारी भोजन खिलाया



मुझे अपनी झिझक पे झिझक आयी

हम दोनों साथ साथ होटलों में खाते हैं

तब क्योँ नहीं ये झिझक आड़े आती

हवाई जहाज में कौन नए बर्तन में खाना बनाता होगा

इस सोच से दोस्ती और मजबूत हो गयी



दिवाली पर मैंने उसे बुलाया

वो नए कपडे पहन कर आया

माँ ने बड़े प्यार से उसका भी थाल सजाया

उसे हमारी दिवाली पसंद आयी

दोस्ती और मजबूत हो गयी



इस दोस्ती को इकतालीस साल बीत गए

सालों साल मिलना नहीं होता

लेकिन दिलों में दोस्ती अभी भी ताजा है

क्योंकि दोस्ती वो रिश्ता है

जो सभी रिश्तों का राजा है !