Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

लोकपाल

लड़ रहा है
एक बूढा अन्ना
जिसके जीवन में
धन सम्पति  का कोई मूल्य नहीं

दमन कर रही है
एक सरकार
जो ऊपर  तो गुर्राती है
लेकिन भीतर ही भीतर सहमी है

मुद्दा है इस सर्कार का
असीम भ्रष्टाचार
जो सड़ांध मार रहा है

मूक दर्शक है ये देश
और इसके सवा सौ करोड़ तमाशबीन
जो दिन भर के दफ्तर के बाद
टी वी पर ये देखते हैं
कि  इस बार अन्ना के अनशन पर
कितनी भीड़ जुटी

बेचता है मिडिया
कभी अन्ना की लोकप्रियता को
कभी घटी हुई भीड़ को

मौका परस्त है विपक्ष
जो कभी अन्ना की गाडी पर सवार हो जाता है
और कभी उसके पहियों की हवा निकालता  है

और इस तरह
समाप्त हो जाएगा किस्सा
एक काल्पनिक आदर्श पुरुष का
जिसे मन बहलाने के लिए कहा जाता है
लोकपाल 

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