Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

लोकपाल

लड़ रहा है
एक बूढा अन्ना
जिसके जीवन में
धन सम्पति  का कोई मूल्य नहीं

दमन कर रही है
एक सरकार
जो ऊपर  तो गुर्राती है
लेकिन भीतर ही भीतर सहमी है

मुद्दा है इस सर्कार का
असीम भ्रष्टाचार
जो सड़ांध मार रहा है

मूक दर्शक है ये देश
और इसके सवा सौ करोड़ तमाशबीन
जो दिन भर के दफ्तर के बाद
टी वी पर ये देखते हैं
कि  इस बार अन्ना के अनशन पर
कितनी भीड़ जुटी

बेचता है मिडिया
कभी अन्ना की लोकप्रियता को
कभी घटी हुई भीड़ को

मौका परस्त है विपक्ष
जो कभी अन्ना की गाडी पर सवार हो जाता है
और कभी उसके पहियों की हवा निकालता  है

और इस तरह
समाप्त हो जाएगा किस्सा
एक काल्पनिक आदर्श पुरुष का
जिसे मन बहलाने के लिए कहा जाता है
लोकपाल 

मंगलवार, 24 जुलाई 2012

मेरे मित्र लिखो

आजकल
लिखना कम हो गया है ?
समय नहीं मिलता ?
समय तो पहले भी इतना ही था - दिन के चौबीस घंटे !
शब्द नहीं मिलते ?
फिर शब्दकोष किस लिए है !
भाव नहीं आते ?
वो तो लिखने बैठूंगा तब आयेंगे .
कोई बात नहीं है कहने को ?
बातों में दम नहीं है .
पढने वाले नहीं मिलते ?
इसकी चिंता तो कभी की ही नहीं
आखिर बात क्या है फिर , क्यों नहीं लिखते ?
क्यों मेरा सर खा रहे हो ?
बहुत परेशान हूँ , इसलिए नहीं लिखता
बहुत दुखी हूँ इसलिए नहीं लिखता
मन में पीड़ा है इसलिए नहीं लिखता
और क्या जानना चाहते हो ?

जानना नहीं चाहता ,
कुछ बताना चाहता हूँ ;
जीवन की परेशानियाँ ही तो लेख हैं
दुखों से ही तो कहानियां निकलती हैं
और पीड़ा तो कविता की गंगोत्री है
इसलिए मेरे मित्र लिखो
तुम्हारे लेख , तुम्हारी कहानियां
और तुम्हारी कवितायेँ ही
समाधान हैं तुम्हारी समस्याओं का !

बुधवार, 4 जुलाई 2012

वेद क्या है


वेद कोई सुन्दर जिल्द वाली चार पुस्तकों का सेट नहीं
जो किताबों की अलमारी की शोभा बढ़ाये
वेद कोई सजावट का सामान  नहीं
क्योंकि इसमें पूरा  विश्व समाये

वेद ज्ञान है किताब नहीं 
वेद शब्द है लेख  नहीं
वेद कोष है कागज नहीं
वेद एक देन है कोई खोज नहीं

क्योंकि वेद तब भी थे 
जब नहीं था कागज
नहीं थी किताब
नहीं थी लिखाई 
नहीं थी छपाई

वेद शब्द हैं 
जो सीधे कानों तक पहुंचे थे
वेद ज्ञान है
जो ईश्वर ने दिया था
सृष्टि के प्रारंभ में
ऋषियों के माध्यम से 

वेद कोष है
जिसमे समाहित है ईश्वर के निर्देश 
आदेश नहीं - निर्देश
क्योंकि उसने दी हमें 
मानने  मानने की स्वतंत्रता 
कर्म करने की छूट 
ऐसा  होता 
तो फिर पुण्य और पाप कहाँ होते 
यदि वो ही करवाता 
तो बस पुण्य ही करवाता
पाप नहीं

वेद माता है
जो हमें जीवन का पीयूष पिलाती है
वेद पिता है
जो हमें बढ़ने को  भोजन देता है
वेद गुरु है 
जो हमें सम्पूर्णता के लिए ज्ञान देता है 
अगर हम लेना चाहे 

वेद क्या है 
सृष्टि का सिलसिला है
एक सृष्टि से दूसरी सृष्टि तक मिला है

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