Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

बुधवार, 21 मार्च 2012

आदमी और जानवर

पाप पुण्य क्या है
मन की भावना है
क्या गलत या सही है
मान लिया बस वही है
ईश्वर ने बनाये हैं
धरती पर प्राणी सब
बोलते अलग अलग
अपनी ही वाणी सब
धर्म ग्रन्थ में लिखे
जीवन के नुस्खे
वो भी कहाँ एक हैं
धर्म भी अनेक हैं
सब विपरीत बात है
अपनी अपनी जात है
अपना विश्वास है
बाकी बकवास है
धर्म जब बदल जाता
सब कुछ बदल जाता
कल तक जो पाप था
करने में श्राप था
आज पुण्य बन गया
धर्म  शून्य बन गया
विश्व सारा बँट गया
टुकड़ों में कट गया
धर्म है ! अधर्म है !
कर्म या दुष्कर्म है !
कोई कुछ न जानता
फिर भी कुछ है मानता
इस लिए विरोध  है
जन जन में क्रोध है
कहीं कोई भक्त है
कहीं बहे रक्त है
झुण्ड झुण्ड लड़ रहे
मुंड मुंड पड़ रहे

जंगल के जानवर
हमसे तो ठीक हैं
धर्म ग्रन्थ पढ़ कर के
पीटते न लीक है
पेट भरना धर्म है
प्राण रक्षा धर्म है
बाकी जो हो रहा
सब स्वतन्त्र कर्म है


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