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( अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि रॉबर्ट  फ्रोस्ट की मशहूर कविता का हिंदी अनुवाद ) 
उस जंगल से जाते थे  दो रस्ते  
हाय, मैं दोनों पर नहीं जा सकता था  
और एक यात्री की तरह देखता था वो रस्ते  
फिर एक रस्ते को देखा दूर तक, अहिस्ते अहिस्ते  
जहाँ वो मुड कर कहीं नीचे जा सकता था  फिर वैसे ही नजर उठा कर देखा दूसरा रस्ता 
जो शायद कुछ ज्यादा जंच रहा था 
क्योंकि  ज्यादा हरा और कम दलित था वो रस्ता 
जहाँ तक सवाल था चुनने का एक रस्ता  
एक से ही थे , मन में ये जंच रहा था     और उस सुबह दोनों रस्तों में से एक को चुनना था 
दोनों रस्तों पर पड़ी पत्तियां कलुषाई नहीं थी  
मैंने  पहले को भविष्य के लिए छोड़ , उस दिन नहीं चुना था 
कोई भी रस्ता कैसे कहीं जा पहुँचता है , ये सुना था  
कभी यहाँ वापस आऊँगा , ये उम्मीद भी नहीं थी   आज ये बताता हूँ एक निःश्वास के साथ तुम्हे 
आज उस बात को बीत गयी उम्रे दराज   
दो अलग अलग रस्ते दिखे  एक जंगल में मुझे  
जो रस्ता कम दला गया था, मैंने चुना था उसे 
और शायद उसी निर्णय का परिणाम है मेरा आज    
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मैंने यहाँ खुला रख छोड़ा है , अपने मन का दरवाजा! जो कुछ मन में होता है , सब लिख डालता हूँ शब्दों में , जो बन जाती है कविता! मुझे जानना हो तो पढ़िए मेरी कवितायेँ !
Mahendra Arya
The Poet
शुक्रवार, 4 नवंबर 2011
अनचुना रस्ता ( अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि रॉबर्ट फ्रोस्ट की मशहूर कविता का हिंदी अनुवाद )
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सार्थक सन्देश देती हुई रचना .....
जवाब देंहटाएंgreat poem well translated!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक भाव..... सुन्दर प्रस्तुति
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