Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

बुधवार, 19 अक्टूबर 2011

अभिशप्त जीवन


सीमा पर सिपाही लड़ता है 
युद्ध के समय 
उसके अलावा आराम करता है
फिर भी सिपाही लोगों के लिए 
श्रद्धेय है 
क्योंकि वो जान की बाजी लगाता है
युद्ध के समय !

मैं भी तो सिपाही हूँ 
मेरी तो सीमा भी अंतहीन है 
और समय भी
हर समय होता हूँ सड़क पर
कड़कती सर्दी में , 
जब लोग दुबक के सोते हैं गरम रजाई में
चिलचिलाती गर्मी में
जब लोग बाहर नहीं निकलते 
मूसलाधार  बरसात में
जब आदमी तो क्या जानवर भी छुप जाता है -
उस वक़्त 
उन तमाम विपरीत परिस्थितियों में
मैं होता हूँ सड़क पर
मेरा घरमेरी रजाई , मेरी सुरक्षा 
सब होता  है मेरा  ट्रक  

जब लोग खाते हैंमाँ के हाथ के पराठे
बीवी के हाथ का पुलाव
मैं धूल फांकता हूँ सड़कों की
ढाबों की खटिया पर लेट कर
  
प्राणों पर बादल
हर समय छाये रहते हैं
क्यों की कुछ मेरे पेशे के पागल 
गाडी चलाते वक़्त
दारू चढ़ाये रहते हैं  

सिपाही के प्राण को खतरा है
दुश्मन की गोली का 
लेकिन मैं घिरा होता हूँ
दुश्मनों से अपने ही देश में
हर दुश्मन अलग अलग वेश में

कोई पुलिस की वर्दी में हफ्ता लेने को
कोई सरकारी अफसर बन कर गालियाँ देने को
कभी सड़कों के गैंग मेरा माल लूटने को
थाने के अफसर मुझे ही कूटने को
मेरा सेठ कहता है कि माल कहाँ है
ट्रांसपोर्टर कहता है कि सवाल कहाँ है
माल इसी ने ही बेच खाया है
हमको इसने एक किस्सा बताया है
मैं क्या करूँ
मैं सीता मैय्या तो नहीं
कि अग्नि परीक्षा दे दूँ 
मेरे सच्चे होने की समीक्षा दे दूं 

लोग कहते हैं की मैं व्याभिचारी हूँ 
जाता हूँ गलत ठिकानों पर
होती है एड्स जैसी बीमारी मुझे
सच है ,
गलत जगहों पर जाता हूँ
क्यों की इंसान  होने की सजा पाता हूँ

जब देश का प्रधानमंत्री 
गर्व से कहता है
की हमने आर्थिक तरक्की की है
तो उस तरक्की की रीढ़ हूँ मैं
देश का उत्पादन , क्रय विक्रय 
लेन देन, आयात निर्यात ,
शांति के समय की जरूरतें 
युद्ध के समय के उपाय 
हर चीज ही तो है गति के साथ 
और गति है हर समय मेरे साथ

फिर क्यों एक सिपाही पूज्य है सबका 
और क्यों मैं एक ट्रक ड्राइवर इतना घृणित  
उसकी क़ुरबानी क़ुरबानी है
मेरी क़ुरबानी महज एक एक्सीडेंट 
उसका जीवन है जीवन शहादत का 
मेरा जीवन है - एक अभिशप्त जीवन

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