समय बीतता रहता
समय जीतता रहता
हम ही हारते रहते
मन को मारते रहते
रोज कुछ कमा लिया
रोज कुछ गंवा दिया
कुछ भी कमा कर के
कुछ भी गंवा कर के
जीवन चलाते हैं
दो रोटी खातें हैं
साँसें नहीं रूकती
घडी भी नहीं थकती
फिर भी कुछ अपने में
रिक्त हुआ लगता है
कोई जो अपना था
मुक्त हुआ लगता है
भीड़ भरे मेले में
दुनिया के रेले में
हाथ जैसे छूट गया
कोई सब लूट गया
एक वर्ष बाद भी
तडपाती याद भी
जीवन पर चलता है
अन्दर से गलता है
लोग चले जाते हैं
और याद आते हैं
बीते हुए वो पल
जीवन बन जाते हैं
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