खुद को तकता आईने में
और खुश होता मन ही मन में
मैं तो मैं हूँ
मैं ही मैं हूँ
मैं मैं में उलझा रहता मैं
बस मैं की सुनता रहता मैं
लेकिन जब मैं बाहर निकला
मैं से मैं भी बाहर निकला
दुनिया देखी जब घूम घूम
पाई बस उसकी धूम धूम
अब लगता हैं मैं तो क्या हूँ
खुद को छोटा सा लगता हूँ
मैं क्या मेरा अस्तित्व है क्या
मेरा अपना महत्व ही क्या
ईश्वर की इस उंचाई पर
नीचे तक की गहराई पर
खुद को खो कर उसको पाया
मन शुद्ध हुआ जब रो पाया
और खुश होता मन ही मन में
मैं तो मैं हूँ
मैं ही मैं हूँ
मैं मैं में उलझा रहता मैं
बस मैं की सुनता रहता मैं
लेकिन जब मैं बाहर निकला
मैं से मैं भी बाहर निकला
दुनिया देखी जब घूम घूम
पाई बस उसकी धूम धूम
अब लगता हैं मैं तो क्या हूँ
खुद को छोटा सा लगता हूँ
मैं क्या मेरा अस्तित्व है क्या
मेरा अपना महत्व ही क्या
ईश्वर की इस उंचाई पर
नीचे तक की गहराई पर
खुद को खो कर उसको पाया
मन शुद्ध हुआ जब रो पाया