Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

खुदगर्ज हूँ मैं

खुद पे ही खुद का कर्ज हूँ मैं
खुद हूँ दवा खुद मर्ज हूँ मैं


जी रहा हूँ मैं बस अपने वास्ते
हूँ कितना स्वार्थी खुदगर्ज हूँ मैं


सोचता हूँ मैं मेरे परिवार तक
बस इतने दायरे में अपना फर्ज हूँ मैं


जिन्दा रह सकूँ बस इतना सोच कर
सांस लेने की महज इक गर्ज हूँ मैं


जिंदगी का साज यूँ ही बज रहा
सुर में बेसुर में जो तर्ज हूँ मैं


उसकी फेहरिस्त से भला बचा है कौन
थोडा आगे या पीछे - पर दर्ज हूँ मैं

5 टिप्‍पणियां:

  1. जिंदगी का साज यूँ ही बज रहा
    सुर में बेसुर में जो तर्ज हूँ मैं

    sir kya kahne hain aapke...:)
    bahut umda....!!

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  2. सुंदर शब्दों के साथ.... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....

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  3. आपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !"

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  4. bhai bahut sundar rachanaa bahut hi sunadr vishleshan hai jindgi ka ""khud par khud ka karj hun -----vaah kyaa baat hai gahari bahut gahari bat

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  5. तेरी खुदगर्जी कोई समझा नहीं, मेरे मतलबीपन को तुमने जाना नहीं..
    हमारी हालत अब वैसे ही है जैसे साहिल को किनारा नहीं !

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