आँगन में उतरी, पसरी है - अलसाई सी धूप
जाड़े की सुबह में थोड़ी ठिठुराई सी धूप
गर्मी में आती मुडेर पर गुस्से में हो लाल
दोपहरी में ज्वाला बनती , गुस्साई सी धूप
वर्षा में बादल बच्चों सी अठखेली करते हैं
लुका छिपी करती उनसे ,मुस्काई सी धूप
वर्षा की बूंदों से मिल कर , श्रृंगारित होती है
इन्द्रधनुष की वेणी पहने , शरमाई सी धूप
पतझड़ के पेड़ों से कहती - ये क्या हाल बनाया
सूखे पत्तों को झड्काती , पुरवाई सी धूप
दिन का मौसम कैसा भी हो, शाम मगर वैसी ही
जैसे सूरज ढलता जाता , कुम्हलाई सी धूप
बहुत सुंदर
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