मैंने यहाँ खुला रख छोड़ा है , अपने मन का दरवाजा! जो कुछ मन में होता है , सब लिख डालता हूँ शब्दों में , जो बन जाती है कविता! मुझे जानना हो तो पढ़िए मेरी कवितायेँ !
Mahendra Arya
The Poet
शनिवार, 17 मई 2025
न्यू नॉर्मल
जिन्ना
जब आज़ादी आनी थी
और गुलामी जानी थी
खुली हवा में जीने की थी एक कल्पना
और धुयें की काली चादर ढ़ह जानी थी
ऐसे में तुमने क्यों ऐसा काम किया
अपनी ख़ातिर मुल्क अलहदा माँग लिया
तुम्हें लगा हिन्दू शासन के नीचे
नहीं तुम्हारी एक चलेगी
तेरे अंदर की ख्वाहिश की
नहीं दाल गलेगी !
तुम तब थे कहाँ जब भगत सिंह ने खाई फांसी
और आजाद ने प्राण दिये थे लड़ते लड़ते
बिस्मिल ने फांसी का फंदा चूमा था जब
अशफ़ाक ने उसका साथ दिया था मरने तक
अशफ़ाक ने नहीं माँगा था कोई दाम खून का
आज़ादी की ख़ातिर मर जाने के जुनून का
तुम लगे भुनाने नाम उसी का लेकर
उसकी क़ुरबानी की दुहाई देकर!
इतना ही अलगाव पसंद था तुमको जिन्ना
तुम भी अपनी फौज बना सकते थे जिन्ना
जैसे सुभाष ने एक बनाई अपनी सेना
आजाद हिंद कहलाई थी वो उसकी सेना
लेकिन तुम थे मौकापरस्त बस एक जुआरी
चाटुकार थे अँग्रेजों के भीतर थी मक्कारी
आज़ादी की नव बिसात पर फन फैलाये
उगल रहे थे वमन ग़रल मजहब का हाए
अपनी खातिर इक नया मुल्क तुम माँग रहे थे
और हमारे नेता गण भी ढूँढ़ रहे थे
एक समझौता जो तेरे मन को भा जाये
कुछ तेरी कुछ उनकी भी बात बन जाये
और खींच दी खून की मिलकर चंद लकीरें
और नयी फिर पहना दी तुमने जंजीरें
खून बहा दोनों मुल्कों में पागलपन का
एक रात में भाई भाई का दुश्मन था
कभी सोचता काश नहीं तुम ऐसा करते
इतने सारे लोग यहाँ पर कभी ना मरते
फिर लगता है सही हुआ जो कुछ भी हुआ था
तुम जैसे इस देश मे रहते वो भी बुरा था
अब भी तुम जैसे हैं कुछ कुछ साँप यहाँ पर
तुमको कहते हैँ ये सब अपना बाप यहाँ पर
लेकिन अब युग आया है तेरे जानें का
तेरी जहरीली सोच का यहाँ मर जाने का