मैंने यहाँ खुला रख छोड़ा है , अपने मन का दरवाजा! जो कुछ मन में होता है , सब लिख डालता हूँ शब्दों में , जो बन जाती है कविता! मुझे जानना हो तो पढ़िए मेरी कवितायेँ !
Mahendra Arya
The Poet
बुधवार, 24 अगस्त 2022
डरा डरा आदमी
हम हर वक़्त किसी न किसी डर के साये में जीते हैं ! क्या होता है वो अनजाना डर ? हमें डर होता है बस किसी न किसी आदमी का ! ये कविता उसी भय को बयां करती है !
blikul ache mja aa gya
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