जागते पहर पहर
रात है कहर कहर
क्यूँ न नज़र आ रही
इक नयी सहर सहर !
सुख बने सपन सभी
दुःख भरे नयन सभी
जिंदगी न जाने क्यों
है गयी ठहर ठहर !
कंठ नीले पड़ गए
होंठ जैसे जड़ गए
अमृतों की चाह में
पी रहे जहर जहर !
ये सभी चमक दमक
सिंधु में भरा नमक
दुःख और दर्द की
उठ रही लहर लहर !