Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

सोमवार, 31 अक्टूबर 2016

Naman







नमन


रंगोली है वहां , रंगोली है यहाँ
कभी होली है वहां , कभी होली है यहाँ

बारूद है वहां , बारूद है यहाँ
बम फटते  हैं वहां , बम फटते हैं यहाँ

जुआ भी है वहां , जुआ भी है यहाँ
प्राणों का दांव वहां , पैसो का दांव यहाँ

अंतर बस इतना है , अंतर बस इतना है
सीमा पर वो खड़े , शहरों में हम पड़े

दिवाली देश में हो , दिवाली देश में है
वो वहाँ प्रतिक्षित हैं , हम यहाँ सुरक्षित हैं

[ दिवाली के अवसर पर भारत की सेना को हमारा नमन !]

बुधवार, 5 अक्टूबर 2016

Chahiye praman !


चाहिए प्रमाण ?

हम ने लड़ा दिए प्राण
तुम्हे चाहिए प्रमाण
इस बार नहीं दे सकेंगे
क्योंकि इस बार
हम में से कोई नहीं मरा
उनके जो मरे
उन्हें हम ला नहीं पाए।

ऐसी अग्नि परीक्षा तो
सीता ने भी नहीं दी थी
हमसे हमारे जीने का हिसाब मांगते हो
जो आज से पहले किसी ने नहीं माँगा
तुम तोपों में पैसा खा गए
तुम हमारे हेलीकोपटरों में दलाली खा गए
हमने तो नहीं माँगा कभी हिसाब
क्योंकि नहीं रखी कोई किताब


हमेशा से सीखा  था
जन्मभूमि माँ होती है
और माँ के दूध का हिसाब नहीं होता है !
फिर भी देंगे तुम्हे जवाब
साथ में देंगे हिसाब
जब कभी हमारी वर्दी में मांगने आओगे
नहीं तो , माँ कसम
बहुत मार खाओगे !