Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

रविवार, 11 जनवरी 2015

स्मृति - विस्मृति


जीवन में कभी कभी कुछ प्यारा खो जाता है
जीवन की प्रियतम वस्तु के खो जाने से
जीवन फिर जैसे अर्थहीन सा  हो जाता है !

दुखों का सागर खूब हिलोरें लेने लगता
मन का विषाद मन को कुंठित करता रहता
तन थका हुआ हो फिर भी मन  जगता रहता !

कुछ खो जाने से समय नहीं थम जाता है
जीवन की गति चलती रहती साँसों के संग
दुःख के क्षण पीछे छोड़ समय बढ़ जाता है।

पीछे मुड़ कर हम कभी पकड़ नहीं पाएंगे
सुख के लम्हे दुःख के लम्हे खो जाएंगे
आने वाले  दिन कुछ और नया दिखलायेंगे !

स्मृति जैसे मनुष्य के मन का मान है
विस्मृति मनुष्य को ईश्वर का वरदान है
दोनों के होने से  जीवन आसान है  !



1 टिप्पणी:

  1. ​बहुत ही बढ़िया ​!
    ​समय निकालकर मेरे ब्लॉग http://puraneebastee.blogspot.in/p/kavita-hindi-poem.html पर भी आना ​

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