Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

सोमवार, 22 अक्टूबर 2012

दिन ब दिन

जिंदगी कुछ यूँ गुजरती  दिन ब दिन
पेड़ से पत्ती  बिखरती दिन ब  दिन

सुख के पल तो टूट  जाते स्वप्न से
दुःख का बढ़ता बोझ रहता दिन ब दिन

रहगुजर में मीत मिलते हैं कभी
लोग अनजाने गुजरते दिन ब दिन

भागती रहती ख़ुशी की खोज में
जिंदगी जीने की खातिर दिन ब दिन

मन कभी बूढा नहीं होता मगर
तन बुढ़ापा ओढ़ता है दिन ब दिन

मौत से हम दूर जितना भागते 
मौत उतनी पास आती दिन ब दिन