Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

सखियाँ


जैसे मानव तन की सुन्दरता होती हैं अँखियाँ
वैसे जीवन की सुन्दरता होती हैं सखियाँ 
 
घर अपना होता उसमे घरवाले अपने होते 
फिर भी सब से छुपे हुए मन के सपने होते
उन सपनों को सुनने और सुनाने को  सखियाँ
 
मन में ठेस कभी लगती तो अन्दर ही रो लेतें 
फिर भी कुंठा के अनचाहे बीज कहीं बो लेते
उस कुंठित मन की पीड़ा को धोने को  सखियाँ
 
कभी शरारत करने को दिल चाहे जब अपना
कोई चुलबुली शैतानी करने का हो सपना
तब फिर अपना बने निशाना प्यारी वो सखियाँ

1 टिप्पणी:

  1. मन में ठेस कभी लगती तो अन्दर ही रो लेतें
    फिर भी कुंठा के अनचाहे बीज कहीं बो लेते
    उस कुंठित मन की पीड़ा को धोने को सखियाँ .....bejod

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