Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

रात और दिन

रात खामोश खड़ी है
जैसे अपराध भाव लिए
रौशनी के दरिया के करीब
कूद कर प्राण देने को
रात जैसे यूँ अड़ी है !

रौशनी की प्रखर किरणे
कर देगी यूँ तार तार इसको
स्याह्पन सारा यूँ धुल जाएगा
रात का अस्तित्व ही जैसे
दिन में पूरा ही ज्यों घुल जाएगा !

लेकिन दिन भर के कारनामों से
फिर से उभरेगी कालिमा की लहर
फिर से स्याही चढ़ेगी दामन पर
फिर से एक और रात आएगी
मुह छिपाएगा जिसमे उजिआला
जैसे अपनी किये पे शर्मिंदा
हो के ज्यों दिन भी अब छुपा फिरता
सांझ की उँगलियों को थामे बस
दिन फिर एक बार रात में ढलता !

गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

घुड़दौड़

घुड़दौड़

भागते घोड़े नहीं ये

भागती तकदीर है

भागती तकदीर की ये

जागती तस्वीर है

दूर बैठे लोग कितने

हैं लगते दांव को

कैमरे कितने लगे जो

आंकते हैं पांव को

कोई लाखों पा चुकेगा

कोई देगा हार सब

खेल अद्भुत ये निराला

खेलता सवार सब


गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

अन्ना हजारे का अनशन


मंत्री बन बन के बैठे सब हो गए धन्ना
चूस लिया है अर्थ देश का जैसे गन्ना
लोकपाल के बिल को दाब दिया था बिल में
इसी लिए अब अनशन पर बैठे हैं अन्ना

लोकपाल के बिल का लेखा देश लिखेगा
भ्रष्ट राजनीतिज्ञों का चेहरा साफ़ दिखेगा
बहुत पुत चुकी कालिख खद्दर के कपड़ों पर
भारत का जन मानस अब इतिहास लिखेगा

लाखों में से एक हुआ था बापू गाँधी
उसके चरखे के धागे ने पीड़ा बांधी
फिर से एक बार आजादी को पाने को
चली जोर से हैं अन्ना गाँधी की आंधी

प्राणों की परवाह नहीं है इस बन्दे को
धन की पद की चाह नहीं है इस बन्दे को
तब तक ग्रहण करेगा ना अन्ना भोजन को
जब तक बंद नहीं कर दे काले धंधे को