ग़र देख किसी दुखियारे को
ऐसे किस्मत के मारे को
कुछ दर्द सा दिल में हुआ नहीं
तेरी आँख से आंसू बहे नहीं
फिर होकर के भी ये नदियां
क्या फर्क पड़ा कि बही न बही !
फिर तेरा होना न होना
जैसे होकर भी न होना
बस अपनी खातिर ही जीना
बस अपनी खातिर ही मरना
क्या मोल तेरी इन साँसों का
क्या फर्क पड़ा कि रही न रही !
आंसू न किसी के पोंछ सके
कोई आस किसी को बंधा न सके
दो शब्द दिलासा के न कहे
करुणा के न कुछ बोल कहे
क्या मूल्य है तेरे दर्शन का
जब मन की बात कही न कही !
जब सहन कर लिया हर दुःख को
जब ग्रहण कर लिया हर सुख को
अपने सुख दुःख के आगे भी
औरों के दुःख में जागे भी
औरों के दुःख न सहन हुए
फिर अपनी पीर सही न सही !