अलग थलग
मेरे एक मुस्लमान दोस्त ने मुझ से पूछा -
आखिर हम भी भारतीय हैं ,
यहीं पैदा हुए , यही पढ़े , यहीं बड़े हुए
फिर भी हम यहाँ के समाज में अलग थलग पड़ जाते हैं
ऐसा क्यों ?
मैं सोच में पड़ गया ;
फिर मैंने पूछा -
क्या तुम अलग थलग हो ?
उसने कहा - मेरी बात नहीं कर रहा
मैं बात कर रहा हूँ - हमारी वृहत्तर कौम की !
मुझे मेरा उत्तर मिल गया
मैंने कहा -
पहला प्रश्न तुम अपने आप से पूछो
क्या अंतर है तुम में और तुम्हारी वृहत्तर कौम में ?
क्यों नहीं तुम अलग थलग
और क्यों है वो अलग थलग ?
वो शायद अलग पड़
जाते हैं
जब वो पायजामा पहनते हैं -
जमीन से छह इंच ऊपर ;
लेकिन सिर्फ उतने ही अलग
जितना की एक धोती धारी युवक -
अपनी कॉलेज की क्लास में पड़ता है
वो शायद अलग पड़ते हैं ,
अपनी अलग सी दिखने वाली दाढ़ी से
जिसके ऊपर की मूंछे सफाचट हैं
लेकिन उतना ही जितना कि -
एक मुंडे सर और लम्बी चोटी
वाला व्यक्ति
वो शायद अलग लगता है ,
अपनी जालीदार टोपी में
लेकिन उतना ही
जितना -
एक दक्षिण भारतीय
उत्तर भारत के एक कार्यक्रम में
सफ़ेद लुंगी पहन कर दीखता है
लेकिन जानते हो
तुम्हारी कौम कब अलग थलग पड़ती
है
तब - जब वो कहती है कि -
उसका मज़हब उसके देश से ऊपर है
इस तरह तो उन्हें अपने भारतीय हिन्दू भाइयों
से ज्यादा प्रिय है पाकिस्तानी मुसलमान !
तुम अलग थलग तब पड़
जाते हो
जब तुम आँख मूँद लेते हो इस सच्चाई से
की तुम्हारी ही कौम की स्त्रियों पर कितना जुल्म होता है
कभी तीन तलाक़ के नाम पर
कभी हलाला के नाम पर
तुम्हारा सारा विवेक , तुम्हारा सारा ज्ञान
सिमट के रह जाता है उन मुल्लों की व्याख्या में
जो जूठा सहारा लेते हैं कभी कुरान का कभी सरिया का
क्योंकि तुम्हारे जैसे पढ़े लिखे भी
भारत के संविधान को नीचे मानते हैं
इन मुल्लों की व्याख्या से
तुम अलग थलग पड़
जाते हो
जब तुम्हारा खून नहीं खौलता
हेड कांस्टेबल प्रेम सागर और नायब सूबेदार सिंह के -
सर कटे धड़ देख कर
लेकिन तुम तैश में आ जाते हो -
एक सेना पर पत्थर मारने वाले बदमाश
फारूक दर को जीप के आगे बाँधने से
और मांग करते हो
उस बहादुर जांबाज लिटुल गोगोई पर कार्यवाही की
मित्र तुम्हारे उत्तर तुम्हारे अंदर से ही निकलेंगे
जब तुम अपनी कौम से पूछोगे -
बुरहान वानी जैसे आतंकवादी तुम्हारे हीरो क्यों हैं
और नरेंद्र मोदी जैसे कद्दावर देशभक्त तुम्हारे लिए जीरो
क्यों है ?