Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

रविवार, 6 मार्च 2016

बस शोर हो शोर है।

संसद

कभी तालियों का जोर है
कभी गलियों का जोर है
संसद अब कुछ नहीं
बस शोर हो शोर है।

जब प्रतिपक्ष गरियाता है
सत्तापक्ष सुनता है
जब सरकार धमकाती है
विपक्ष सर धुनता है।

हर बकवास का उत्तर देने को
एक नयी बकवास तैयार होती है
फिर उसके उत्तर के लिए
एक और बकवास की मार होती है।

जो बोल नहीं पाते
वो फड़कने लगते हैं
जिन्हे समय नहीं दिया जाता
वो भड़कने लगते हैं।

ऐसा लगता है -
संसद एक थिएटर है
जिसमे साढ़े पांच सौ
एक्टर हैं

जिसकी टिकट
यूँ तो मुफ्त है
लेकिन हमारी जेब के करोड़ों
हर घंटे लुप्त हैं

कभी कभी संसद
चलने नहीं देते
चलने देते
तो क्या कर लेते

उस अनदेखी
असहिष्णुता के लिए
दिनोदिन चलती है
बहस

लेकिन सियाचिन में
मरने वालों के लिए
होता है मौन
आधे मिनट का

सत्र पर सत्र
बीत जाते हैं
खजाने के खजाने
रीत जाते हैं

पर फैसले
कभी नहीं होते
जरुरी बिलों पर
देश के निराश दिलों पर

बाल की बस
खाल निकलती है
चाल पर चाल
निकलती है .

पांच साल
यूँ ही चलता है
फिर अगले पांच साल के लिए
दिल मचलता है


1 टिप्पणी:

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