पहाड़ों में उसे ढूंढें
मजारों में उसे ढूंढें
जो दिल के पास हो रहता
नजारों में उसे ढूंढें
कोई काबा को जाता है
कोई गंगा नहाता है
कोई खतरों से लड़ लड़ के
यूँ बद्रीनाथ जाता है
मदीना और मक्का हो
नमाजी कितना पक्का हो
खुदा को ढूंढता रहता
हमेशा हक्का बक्का हो
कोई अरदास करता है
कोई उपवास करता है
मगर साहब नहीं मिलता
ग्रन्थ का पाठ करता है
अगर अल्लाह वहां होते
अगर ईश्वर वहां होते
न मरते लोग हज जाकर
पहाड़ों में नहीं खोते
उत्तराखंड खंडित है
यहाँ हर भक्त दण्डित है
ये पूजा की सभी जगहें
मात्र मानव से मंडित है
खुदा खुद तेरे अन्दर है
तेरा मन ईश मंदर है
सफाई कर ले अन्दर की
तभी जीवन ये सुन्दर है