बहुत दिनों बाद मन में आया
की एक कविता लिखूं
अगले ही क्षण एक प्रश्न उठा
की क्या लिखूं
आखिर क्या होती है कविता
बात मन में आई
और फिर मन भटक गया
बात में थी गहराई
और फिर कविता लिखने की जगह
लग गया इस उत्तर की तलाश में
इतना खो गया इस तलाश में
की ठंडी हो गयी चाय मेरी गिलास में
आखिर कविता क्या होती है ?
प्रश्न लगा मुश्किल सा
बिना समझे ही कैसे लिखता रहा मैं
मसला था जटिल सा
शब्दों की माला है कविता
या भावों की हाला है कविता
मन में मची उहापोह है कविता
या कभी मिलन कभी बिछोह है कविता
रचना है सृजन है कविता
या विचारों का मंथन है कविता
दही बिलोने से निकला मखन है
या देवों और असुरों का सागर मंथन है
प्रेमिका के सौंदर्य का श्रृंगार है कविता
या क्रांति का उदघोष अंगार है कविता
अकेले में मन को छु ले वो अहसास है कविता
या फिर अकेले का टाइम पास है कविता
जीवन को जीने का सन्देश है कविता
मस्ती में रहने का निर्देश है कविता
माँ के होठों पर लोरी है कविता
सावन के झूले पर गौरी है कविता
मंदिर में ईश्वर का भजन है कविता
मीराबाई की भक्ति की लगन है कविता
सूरदास के अंधेपन का प्रकाश है
उड़ते हुए पंक्षी का आकाश है
संगीत की धुन पर जब लता दीदी गाती है
उसमे भी सुन्दर सी कविता नजर आती है
कोयल की पेड़ों पर कूक है कविता
कवि के ह्रदय में उठी एक हूक है कविता
लो बातों बातों में बन गयी कविता
दिल और दिमाग में जब ठन गयी कविता
चाय का क्या है , और बन जायेगी
लेकिन कविता इस क्षण नहीं लिखी , तो बस खो जायेगी