Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

बुधवार, 16 जून 2010

ताजे टमाटर

थोडा सा जायका बदलें . एक मित्र ने एक sms भेजा कुछ दिनों पहले. बहुत मजा आया पढ़ कर. उसी को एक लघु कथा का रूप दे रहा हूँ.
एक भिखारी भीख मांग रहा था - ' खाने को रोटी दे दो .....खाने को रोटी दे दो ......'
लोग सुन रहे थे लेकिन कोई ध्यान ही नहीं दे रहा था . एक सज्जन बाजार से निकल रहे थे , सब्जी भाजी खरीद कर. उस भिखारी की पुकार सुन कर रुक गए उसके पास.
भिखारी फिर बोला-' भूखा हूँ , खाने को रोटी दे दो ....'
सज्जन बड़े आराम से बोले - 'टमाटर खाओ' .
भिखारी बोला- 'साहब क्यों मजाक करते हो , मुझे तो एक रोटी ही दे दो .'
सज्जन बोले -' बोला ना , टमाटर खाओ '
भिखारी ने सोचा की ये साहब बाजार से ताजे टमाटर खरीद कर आ रहें हैं , इस लिए टमाटर देना चाहते हैं. भिखारी बोला- ' ठीक है साहब , टमाटर दीजिये '
सज्जन गरम हो कर बोले- ' त्या बतते हो , अब तमा तर भी मैं ही दूं तुमतो '
जी हाँ श्रीमान तुतला कर बोलते थे . क्यों, आया ना मजा ?

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