tag:blogger.com,1999:blog-570573753792296226.post6349342327666090438..comments2023-10-07T13:29:02.173+05:30Comments on Mahendra's Blog (मेरी हिंदी कवितायेँ ): नीलकंठMahendra Arya's Hindi Poetryhttp://www.blogger.com/profile/02932120575765684553noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-570573753792296226.post-14576645130409277722011-07-09T16:57:17.386+05:302011-07-09T16:57:17.386+05:30बहुत बहुत बहुत सुन्दर रचना लिखी है भाई |कब से इसे ...बहुत बहुत बहुत सुन्दर रचना लिखी है भाई |कब से इसे खोज रही थी | आखें भर आई | बहुत ही सही बाते कही आपने | जीवन भर कितना जहर कितना विष हम पीते रहते हैं | जब कभी कहीं से दुख मिलता है , नफरत मिलती है | पीड़ा मिलती है | हम कैसे आखों के आसुओं को गिरने भी नहीं देते| उन्हें अन्दर ही अन्दर जज्ब कर लेते है | और वो विष बन जाते हैं | जब कोई दिल तोड़ देता है या अपनी नफरत हम पर उड़ेल देता है तो हम फिर से विष भर जाते है | लेकिन कभी भी पलटवार नहीं करते |<br />और ये विष , हम उन पर उड़ेल देते है जो हमारे अपने हैं | क्यों करते हैं हम ऐसा ? लेकिन हम विषपायी जनम के है | कुछ बूंदे प्रेम की , अपनेपन की ,आत्मीयता की हमें फिर से अमृत मयी बना देती है |कैसे बहुत से विष पर कुछ बूंदे अमृत की भारी पड़ती है | हम नीलकंठ ही है | विष को गले से नीचे नहीं उतार सकते --जीना जो है जरूरी | सबके लिए | अधूरे से रिश्तों में जलते रहो अधूरी सी सांसों में पलते रहो मगर जीये जाने का दस्तूर है | बहुत सुन्दर , सहेजने योग्य रचना है ये | बहुत गहरी बहुत खूब | बधाई | मनवा https://www.blogger.com/profile/02870656533991445962noreply@blogger.com