Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

मंगलवार, 18 जुलाई 2017

दंश



विश्व से सम्बन्ध अपने , पर पडोसी क्रुद्ध क्यों है
देश सब कुटुम्ब हैं, सरहद पे लेकिन युद्ध क्यों है ?

भाइयों में बाँट होती , माँ बँटी इस देश में थी
दंश माँ के दर्द का ,अब तक गला अवरुद्ध क्यों है ?

कुछ गलत हरगिज़ हुआ था , जब लिया ये फैसला था
फैसले लेकर ग़लत भी , वो बने प्रबुद्ध क्यों है ?

कौन कहता है आज़ादी, मिल गयी हमको लडे बिन 
जो लड़ाई तब हुयी वो चल रही अविरुद्ध क्यों है ?

बन गए चाचा ,पिता वो , देश जब ये जल रहा था
जिनके दामन खून से लथपथ रहे वो शुद्ध क्यों है ?

सोमवार, 17 जुलाई 2017

थकन



थक गया है आदमी इक खोज से
मर रहा क्यूँ ख्वाहिशों के बोझ से

तब से भागा फिर रहा हर रोज ये
चल पड़ा था पैर से जिस रोज से

जिंदगी की मौज  पाने के लिए
भिड़  रहा हर सू दुखों की मौज से

चाहते हैं अमन की सुकून  की
लड़ रहा है नफरतों की फ़ौज से
                        

रविवार, 16 जुलाई 2017

राजनैतिक छुआछूत

राजनैतिक छुआछूत



छुआछूत
हमारे देश में हमेशा से विध्यमान है
कुछ सामाजिक अंधविश्वासों से
कुछ धार्मिक रीति रिवाजों से
कोई जातिभेद के कारण  परेशान है
छुआछूत हमेशा से विध्यमान है !

लेकिन एक छुआछूत ऐसा भी है
जो पहले नहीं था , लेकिन अब है
इसकी खास बात -
जो कभी अछूत नहीं था वो अब है
जो पहले अछूत था , वो अब नहीं है
अब नहीं है तो क्या फिर कभी नहीं होगा
इसकी कोई गारंटी नहीं है साहब ,
कब होगा और कब नहीं होगा।

अब बीजेपी को ही देखिये
राजनीति का सबसे बड़ा अछूत दल
दल क्या था बस साम्प्रदायिक ताकतों का दलदल
हाँ यही कहती थी सारी धर्म निरपेक्ष ताकतें
हमारा और किसी से कितना भी विरोध क्यों न  हो
लेकिन साम्प्रदायिक ताकतों को दूर रखना है


लेकिन हुआ क्या ,
दूर रखने वाले स्वयं दूर हो गए सत्ता से
चुप रहने वाले बदल गए बुद्धिमत्ता से
जैसे ही मौका मिला बदल लिए विचार
बिना सत्ता वाले विचारों का क्या डाले अचार

चर्चा करें - कुछ नामों की
और उनके बदले हुए अंजामों की
एक थी  बहुगुणा जोशी रीता
देखिये उन संग क्या बीता
कांग्रेस की प्रवक्ता बड़ी मुखर थी
सांप्रदायिक ताकतों की निंदा में प्रखर थी
यूपी चुनाव में उन्हें हाथ ने यूँ काटा
पलट कर उन्होंने मारा कांग्रेस को चाटा
समय रहते पलट गयी
सारी भाषा बदल गयी
कहाँ वो प्रवक्ता मुखर गया
समझो बुढ़ापा सुधर गया।

बात करें सत्ता के खुमार की
भई अपने पुराने दोस्त नितीश कुमार की
यूँ तो नेता जेडी यु के थे दमदार
लेकिन बड़े लचीले असरदार
मंत्रिपद लेने में गुरेज नहीं था
बीजेपी से भी परहेज नहीं था
खूब मौज की एनडीए काल में
रेल कृषि परिवहन जो मिला , खुश  रहे हर हाल में

केंद्र में सत्ता गयी हाथ से
सीएम बने बीजेपी के साथ से
फिर अचानक ये पूत कपूत हो गया
इसे भी राजनैतिक छुआछूत हो गया
मोदी का नाम इन्हे सुहाया नहीं
इन्हे उम्मीदवार क्यों बनाया नहीं ?

बस फिर से जुड़ गए लालू और कांग्रेस की सर्कार से
खुल कर चल रहे उन्मुक्त भ्रष्टाचार से
जब तक चला चलाते रहे
बदले में उनको बचाते रहे
लेकिन आजकल फिर हुआ ह्रदय परिवर्तन है
किसी नए युग का निमंत्रण है
नितीश फिर से ईमानदारी का दूत हो गया
एक बार फिर राजनैतिक छुआछूत हो गया

तेजस्वी को जाना पड़ेगा
लालू को हटाना पड़ेगा
कांग्रेस तो यूँ ही टेका लिए हुए है
बीजेपी टकटकी लगाए हुए है
फल फिर टपकेगा  पेड़ से
बस टपकते ही लपक लेंगे बेर से।


छुआछूत के मारे और बहुत पड़े हैं
हमें भी ले लो कबसे लाइन में खड़े हैं
शरद पवार , मुलायम , और नारायण राणे
इनका नंबर कब आये कौन जाने !