Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

रविवार, 3 अप्रैल 2016

मेरी ख़ामोशी रज़ा सी हो गयी


जिंदगी कुछ बेमज़ा  सी हो गयी 
साँस लेना ही वजह सी हो गयी 

मुझसे कुछ पूछे बिना सब कुछ हुआ 
मेरी ख़ामोशी रज़ा सी हो गयी 

मुस्कुराने की वजह मिलती नहीं 
मुस्कराहट भी सज़ा  सी हो गयी

 फेफड़ों में जहर सा यूँ भर रहा 
जैसे ज़हरीली फ़िज़ा सी हो गयी 

लड़ रहा हर वक़्त कोई जिंदगी से 
जिंदगी भी यूँ कज़ा सी हो गयी 




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