Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

रविवार, 23 अगस्त 2015

हे पाकिस्तान !

हे पाकिस्तान !
शर्म आती  है ये सोच कर
कि  तुम कभी मेरा ही हिस्सा थे !
चकित होता हूँ ये याद कर के
कि तुम भी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई का हिस्सा थे !

आजादी क्या मिली
तुम्हारे तो सुर ही बदल गए थे
हजारों वर्षों की दासता में साथ थे
आजादी में बाहर निकल गए थे !

 तुम्हारा दोष नहीं
दोष है तुम्हारे रहनुमाओं का
शापित हो तुम , फल भुगत रहे हो
बंटवारे में मिली बद्दुआओं का !

आज मैं कहाँ और तुम कहाँ ?
देखता है सारा जहाँ
मैं हूँ  प्रगतिशील दुनिया का सिरमौर
तुम हो एक आतंकवादी , झूठे और चोर !

हाँ चोर ! क्योंकि चोरी छिपे वार करते हो !
अपनी ही जमीन पर  आतंकवादी तैयार करते हो
बना लिया मजहब को तुमने  हथियार
और हो गए किसी पागल घोड़े पर सवार !

ओसामा बिन लादेन जैसों के शरणदाता हो तुम
दावूद  इब्राहिम जैसे अपराधियों  के तो पिता और माता हो तुम
लाख झूठ बोलते हो दुनिया को , इनके लिए
वही मरवाएंगे तुम्हे , मरते हो जिनके लिए !

किस्मत अच्छी ही थी ,कि  तुम हमसे कट  गए
भले ही भारत माता के अंग बंट   गए
लेकिन कैंसर के हिस्से को काटना ही अच्छा है
कष्ट पाकर भी तन से छांटना ही अच्छा है !

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