Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

किसान रैली



सभा चल रही थी
आम आदमी बैठे थे
नेता मंच से भाषण दे रहे थे !

तभी एक आम आदमी
चढ़ गया पेड़ पर
कुछ आभास दिया
आत्महत्या का !

सभा चलती रही
आम आदमी बैठे रहे
नेता भाषण देते रहे !

लग गयी बाजियां
किसी ने कहा
ये सब है कलाबाजियां
कुछ मरने वरने  वाला नहीं ये
लग गयी सौ सौ की !

पेड़ पर हरकते बढ़ी
आम आदमी ने बनाया  एक फंदा
एक तरफ बाँधा पेड़ से
दूसरी तरफ गले से !

सभा फिर भी चलती रही
आम आदमी वैसे ही बैठे रहे
नेता बेखबर भाषण देते रहे !

उधर बाजियों के बाजार में तेजी आई
एक ने कहा - बोल बढ़ाता  है क्या ?
दूसरे ने कहा - हाँ हाँ , पाँच पाँच  सौ की !
तीसरा जुड़ गया - पाँच सौ मेरे भी मरने पर !

अचानक
पेड़ पर बैठा आम आदमी झूल गया
उसके पैर हवा में बल खाते रहे
उतनी देर तक
जितनी देर साँसें सह पायी कसन को
फिर सब कुछ ख़त्म !

सभा चलती रही
आदमी बैठे रहे
मंच पर भाषण चलते रहे -
लेकिन विषय बदल गया
किसान के शुभचिंतक
किसान की मातम पुरसी में लग गए
आनन फानन में कारण तैयार हो  गए
दोषारोपण के लिए

बाजी के सौदे भुगतान की मांग करने लगे
न मरने पर लगाने वाले का तर्क था -
अभी मरा कहाँ है
दूसरी तरफ वाला बोला -
क्या पोस्ट मोर्टम के बाद देगा
तीसरे ने कहा -
कौन इन्तजार करेगा ,
चले आधे आधे में फैसला कर लेते हैं

कुछ लोग पेड़ पर चढ़ गए
लटके  हुए आम आदमी को नीचे उतारा
गाड़ी में डाल कर ले गए

मंच से आवाज आई -
हमारे कार्यकर्ताओं ने उसे उतारा
पुलिस ने कुछ नहीं किया
क्यूंकि पुलिस हमारी नहीं है
छोड़िये ये सब …
आइये किसानों की बात आगे बढ़ाते हैं

बाजी आधे आधे पर सलट गयी

मीडिया को एक नया मसाला मिल गया

लोकसभा को गरमाने के लिए बहाना  मिल गया !

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