Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

सोमवार, 30 मार्च 2015

आम आदमी भी फिर आम हो गया


जब आम आदमी का बड़ा नाम हो गया
अब आम आदमी भी फिर आम हो गया

बातें बड़ी बड़ी जो करते थे जोर से
बातों के हल्केपन से बदनाम हो गया

भाईचारे के गाने जो गाते थे मंच पर
भाई बेचारे को  रो रो जुकाम  हो गया

जो लोकपाल के नारे से दिल्ली पर छा गए
उनका  ही लोकपाल अब गुमनाम हो गया

जो बात करते थे हमेशा प्रजातंत्र की
वो आज तानाशाह सरे आम हो गया

सत्ता का लोभ है नहीं, नारे लगाते  थे
सत्ता मिली तो बस बेलगाम हो गया




मंगलवार, 3 मार्च 2015

सुबह की शमां

क्यूँ  आजकल हवाएँ कुछ सर्द सर्द है
क्यूँ आजकल फ़िज़ाएं भी गर्द गर्द  हैं

चेहरे सुबह की शमां  से यूँ बुझे हुए
हर आँख में उदासी क्यूँ जर्द जर्द है

खुशियां सभी की जैसे काफूर हो गयी 
मुस्कान में भी दिखता क्यूँ दर्द दर्द है

ये नौजवान पीढ़ी क्यूँ बुजुर्ग हो गयी
नामर्द बन रहा क्यूँ हर मर्द मर्द है