Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

गैंग रेप


सुनसान था रास्ता
अँधेरी थी रात
दिल्ली शहर की
एक सड़क
सड़क पर जा रही थी एक लड़की
सामने से आ रहे थे कुछ लड़के
लड़की सहमी
लड़के लडखडाये
और फिर शुरू हो गया
एक ग़जब जा परिवर्तन
दिल्ली जैसे बदलने लगी
एक घनघोर जंगल में
सड़क एक पगडण्डी में
लड़की अपने आप में सिमटी
बन गयी एक ताजा मांस का लोथड़ा
उन लड़कों के जैसे  निकल आये सींग
आँखों में वहशीपन और मुंह से लार
हाथों के नाख़ून बन गए लम्बे लम्बे चाकू
मुंह के दांत निकल आये व्याघ्र की तरह
और फिर घेर लिया उन जानवरों नें
अपने शिकार को
जख्मी किया उसके शरीर को
लहुलुहान किया उसकी आत्मा को
फेंक दिया उसकी जिन्दा  लाश को पेड़ों के पीछे
बस खाया नहीं वो मांस
पिया नहीं लहू
आखिर इंसान जो थे !

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