Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

सोमवार, 5 मार्च 2012

समता - स्मृति


लोग बहुत आते हैं
लोग बहुत जाते हैं
लेकिन कुछ लोग यहाँ 
जाकर रह जाते हैं
 
आना भी जीवन है 
जाना भी जीवन है
कैसे जियें , जिसने  
जाना वो जीवन है
  
घर  की वो गरिमा थी
जीवन की महिमा थी
मंदिर की भक्ति थी
जीने की शक्ति थी
 
शाश्वत हंसी उनकी 
जिसमें  ख़ुशी सबकी
छोटे बड़े सारे
लगते उन्हें प्यारे 
 
कितना संघर्ष था 
फिर भी क्या हर्ष था
भारत क्या अमरीका
सबने उनसे सीखा 
 
जीवन की मुश्किलें 
हंस हंस के झेल लें  
दूसरों के दुःख फिर भी
मन में समेट लें  
 
मूरत थी ममता की
सूरत थी समता की
प्रेम की नदी थी वो
प्रेरणा थी क्षमता की
 
आज वो नहीं यहाँ
क्यों कर गयी कहाँ 
सब के दिलों में वो
फिर भी बसी यहाँ
 
स्मृति में आज भी
करती हैं राज भी
शाश्वत रहेंगी वो
उनकी अब  याद भी

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