Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

मंगलवार, 31 जनवरी 2012

ट्रीड मिल


 ट्रीड मिल
कभी आपने देखी है ट्रीड मिल
जी हाँ वही दौड़ने वाली मशीन 
नहीं नहीं वो नहीं दौड़ती 
हम दौड़ते हैं 
दरअसल वही दौड़ती है 
हम नहीं 
पर शायद नहीं 
दौड़ते तो हम भी हैं 
और दौड़ती वो भी है 
लेकिन हम वहीँ के वहीँ रह जाते हैं 
क्योंकि हम दौड़ते हैं 
मशीन की गति के सामान 
लेकिन उसकी विपरीत दिशा में 
हम कोशिश करते हैं 
कि वो हमें पीछे न ले जाएँ 
यही तो करते हैं हम जीवन भर 
वक़्त भागता रहता है 
निरंतर पीछे 
हम भागते रहते हैं निरंतर आगे 
अगर हम सुस्त हुए 
तो वक़्त हमें पीछे ले जाएगा 
और अंत में नीचे गिरा देगा 
आजीवन प्रयास करतें हैं 
वक़्त से आगे भागने का 
इसी प्रयास के कारण होते हैं हम जीवित 
बिना कहीं पहुंचे हुए भी 
कहीं थक हार कर 
हम तो रुक जायेंगे और गिर पड़ेंगे 
लेकिन फिर भी नहीं रुकेगी 
वक़्त की ये ट्रीड मिल  

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