Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

शनिवार, 17 सितंबर 2011

अलग अलग चाँद
















आसमान में जब निकला पूनम का चाँद
सब ने देखा क्या वो ही पूनम का चाँद ?
व्यापारी ने चांदी का सिक्का देखा
और भिखारी ने लटकी रोटी देखी
बच्चे ने देखी चरखे वाली नानी
और खिलाडी ने उसमे मेडल देखा
उपवासी पत्नी ने पति को देखा उसमे
माँ ने उसमे बेटे का मामा देखा
प्रेमी ने देखा प्रेयसी का चेहरा
और पुजारी ने उसमे ईश्वर देखा
वैज्ञानिक ने उसमे भी जीवन पाया
और ज्योतिषी ने उसमे भविष्य पाया
चाँद वही था दिखता अलग अलग क्यूँ था
मन की आँखों में उसका बिम्ब अलग यूँ था `
आँखें ही बस नहीं देखती है सब कुछ
मन भी उसके साथ देखता है कुछ कुछ

3 टिप्‍पणियां:

  1. ये मन ही तो है जो पत्थर में भगवान पैदा कर देता है ... मन की अनोखे काम ...
    सोचने को विबश करती है आपकी रचना ...

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  2. सुंदर भाव और संदेश लिए दिल से निकली एक रचना !

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  3. पूनम का चांद बहुत सुंदर कविता है ! बधाई !


    एक ही चांद सबको अलग अलग क्यों दिखता है , इसका निचोड़ भी सही है -
    आंखें ही बस नहीं देखती हैं सब कुछ
    मन भी उसके साथ देखता है कुछ कुछ


    वाऽऽह ! बहुत ख़ूब !

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