Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

सोमवार, 27 जून 2011

चार जून की रात


वो रात थी चार जून उन्नीस सौ नवासी की

चीन देश के तियानानमन स्क्वयेर में फैली बदहवासी की

एक लाख से अधिक छात्र कर रहे थे विरोध प्रदर्शन

जिनमे से एक हजार कर रहे थे अनशन

बौखलाई हुई चीनी सरकार ने घेर लिया था शहर

हथियारों और टैंकों से लैश सेना ने ढाया था कहर

चारों तरफ बिछ गयी थी अढाई हजार लाशें

दुनिया देख रही थी तानाशाही चीन में हो रहे तमाशे



वो रात भी थी चार जून की

भ्रष्टाचार के खिलाफ बढ़ते जुनून की

एक योगी ने एक सरकार को दे दी चुनौती

एक लक्ष्य बन गया था - जो था एक मनौती

दो दिन के भूखे प्यासे भारतीय

थक कर लेटे थे निष्क्रिय

दिन भर था जो मन में अथाह

कुछ कर दिखाने का उत्साह

शाम को बदल गयी थी तस्वीर

मुश्किल लगती थी बदलनी तकदीर

क्योंकि खोट था सरकारी नीयत में

समझौते के नाम पर लिखवाए पत्र की बदनीयत में

एक सन्यासी को मंत्रियों ने ठगा

उसे ही ठग बताया जिन्होंने उसे ठगा

यहाँ तक तो इतिहास था धोखे का

कुटिलता से लिए गए मौके का

लेकिन उस रात जो हुआ वो अत्याचार था

प्रजातंत्र पर गहरा प्रहार था

पराकाष्ठा थी दरिंदगी की

सत्ता के गलियारों की गन्दगी की

भूखे प्यासे सोये हुए सत्याग्रही

भूखे भेड़ियों से टूटे पुलिस के दुराग्रही

चाहे थे बच्चे , नारी या नर

बरसे डंडे चाहे था सर या कमर

एक किसी ने लगा दी थी आग

मंच पर लेटे सभी लोग लिए भाग

दो घंटे चला तांडव हिंसा का

उस आन्दोलन पर जो सत्याग्रह था अहिंसा का

सरकार अपनी सफाई लाख दे ले

कभी लालच , कभी धमकी , कभी घुड़की दे ले

ये आग जो सुलग चुकी है देश में

हर प्रान्त हर मजहब के वेश में

ये जला कर कर देगी राख सब

भस्म हो जायेंगे गुस्ताख सब

चीन तो तानाशाही देश था इसलिए जो हुआ सो हुआ

भारत जैसे प्रजातंत्र में ये सब क्यों हुआ ?

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