Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

कसाब का फैसला

हाई कोर्ट ने भी सुना दिया फैसला
कसाब को दी जाये फांसी
लेकिन ये नहीं सुनाया कि कब
अखबार बताते हैं
कि शायद २०१८ तक !

बहुत निराश हैं वो लोग
जिन्होंने खोया किसी अपने को
मुंबई में उस रात
२६ नवम्बर २००८ को !

यानि कि कसाब जिन्दा रहेगा दस साल तक
ऐसे खुले आम खूनी खेल के बाद .

मेरी दरख्वास्त  है
देश के उच्चतम न्यायालय  से
हमें मंजूर है
यह दस साल कि रियायत 
लेकिन एक सुधार कर देवें फैसले में  
कसाब को ले जाया जाए
उन तमाम लोगों के घर
जिन्होंने खोया था उस रात
अपना बेटा- बेटी ,पति- पत्नी माँ -बाप या  भाई बहन,
उन्हें निकाल लेने दो अपने मन की
सिर्फ एक बार
इस जीवित कसाब पर

और उसके बाद
उसे बंद रखा जाए
एक ऐसी कोठरी में
जहाँ इन दस सालों में
उसे किसी इंसान के दर्शन न हों
और उस कोठरी की दीवारों पर
निरंतर चलती रहे एक फिल्म
उन तीन दिनों के खूनी खेल की
जो आज भी हम टी वी पर देखतें हैं
और नेपथ्य से आती रहें
वो तमाम आवाजें
जो उन तीन दिनों में
आ रही थी - उन मासूम लोगों के ह्रदय से
चीख , रुदन , प्रार्थना , श्राप , आह , कराह
और इन दस सालों में
उसे खाने को दिया जाए
लावारिस इंसानी लाश
पीने को दिया जाए
लाल खून !

तब जाकर न्याय होगा
उन सभी बदकिस्मत मरने वालों के साथ
उनके परिवारों के साथ
मुंबई के साथ
पूरे हिंदुस्तान के साथ
इंसानियत के साथ


शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

मुंबई ७/११/२००६

मुंबई
मेरा शहर मेरा दोस्त
मेरा सपना मेरा अपना
मेरा घर मेरा दफ्तर
मेरी सुबह मेरी शाम
मुंबई - मेरा जीवन

मुंबई- एक विशाल हथेली
जिस पर खिंची आड़ी तिरछी रेखाएं
एक है जीवन रेखा - वेस्टर्न रेल
दूसरी भाग्य रेखा - सेन्ट्रल रेल
दौड़ता है जीवन इन रेखाओं में
धडकता है दिल मुंबई का इन बाँहों में

फिर किसने की शरारत , मुंबई की आत्मा से
कौन शैतान है वो जो डरता नहीं परमात्मा से
किसने बिछाया बारूद इन पटरियों पर
कौन बैठा है मौत की गठरियों पर

खेल चूका वो दांव जिसे खेलना था
झेल चुके हम लोग जो कुछ झेलना था
सैकंडों लाशें , छितराए अंग , खून की नदियाँ
क्या यही लक्ष्य था ?
ये सब किस बात का था जरिया ?

लक्ष्य जो भी हो वो जीत नहीं पायेगा
उसका खौफ मुंबई की आत्मा को हरा नहीं पायेगा
इन हादसों से मुंबई नहीं हिलती
क्योंकि मुंबई जैसी आत्मा कहीं नहीं मिलती

दो चार ने गद्दारी की इस शहर में
लाखों लोग आगे आये इस कहर में
घायलों को कष्ट से बचाने के लिए
जख्मों पर मरहम लगाने के लिए

एक हादसा कुछ भी मिटा नहीं सकता
दिलों की दौलत को घटा नहीं सकता
दरिया के बीच अलसाया  सा मुंबई शहर
नफरतों की आग कोई मिसमे लगा नहीं सकता    

गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

इरादे

 दुखों के जंगल में
सुख की पगडण्डी है
चौराहा उलझन का
निर्णय की मंजिल है

कुछ अनजाने डर से
रातें अन्धियायी है 
चिंताओं की रेखा
माथे पर छाई है

फिर भी राहें दिखती
बिजली की तड़पन से
डर भी मिट मिट जाता
पत्तों की खडकन से

राहों में शूल बिछे
अनबूझी मुश्किल  के
शूलों में फूल खिले
खुशियों के दो पल के

पग में कांटे चुभते
जीवन के वादों के
पावों  में जूते हैं
मजबूत इरादों के
 

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

प्रभु पास तुम्हारे चल कर आयेंगे

जब मंजिल कहीं नजर नहीं आती हो
राहों की मुश्किल तुम्हे रुलाती हो
जब नभ पर अँधियारा बढ़ आया हो
और तेज हवा से अंधड़ आया हो
तब हाथों को ले जोड़ ' प्रभो ' कहना
और नैनो को कर मूँद 'प्रभो' कहना
प्रभु पास तुम्हारे चल कर आयेंगे
दोनों हाथों से तुम्हे उठाएंगे !
 
जब मन में कोई उलझन हो भारी
जब उथल पुथल लगती दुनिया सारी
जब सारे रस्ते बंद नजर आते
जब प्रश्नों  के उत्तर नहीं मिल पाते
तब मन में करना ध्यान और कहना
'प्रभु मदद करो, अब चुप मत रहना'
मन के दरवाजे से प्रभु आयेंगे
और सारे प्रश्नों को सुलझाएंगे
 
जब सारे अपने बेगाने लगते
जाने पहचाने अनजाने लगते
जब लोगों पर विश्वास ख़त्म होता
अपनों के हाथों घोर  जख्म होता
तब उसको अपना मान, शांत होना
उसके चरणों में बैठ दर्द रोना 
सर सहलाने को तब प्रभि आयेंगे
आंसू पोछेंगे तुम्हे मनाएंगे