Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

सुबह का अखबार

सोचता हूँ

अखबार पढना बंद कर दूं

क्या पढूं

एक विदेशी महिला का बलात्कार

पांच वर्षीया बालिका से कुकर्म

पिता द्वारा बेटी गर्भवती

पुलिस थाने में युवती से सामूहिक बलात्कार

तांत्रिक द्वारा माँ और बेटी के साथ लगातार कुकर्म



क्या इतनी गिर गयी है

समाज की सोच

या आने बाकी है

गिरावट के और भी आयाम

आम आदमी इतना जानवर हो गया है .........

अपनी बात वापस लेता हूँ

जानवर से क्षमा मांगते हुए

जानवर अपनी पृकृति से बाहर कुछ नहीं करता

प्रकृति जो ईश्वर प्रदत है



लेकिन मेरे अखबार न पढने से क्या होगा

समाचार तो नहीं बदल जायेंगे

समाचार बदलेंगे

सम आचार बदलने से

जब तक इस देश में

सीटियाँ बजती रहेंगी

किसी मुन्नी के बदनाम होने पर

तब तक अखबार ऐसे ही भरा रहेगा

मुनियों के बलात्कार की खबरों से

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