Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

गुरुवार, 17 जून 2010

मेज थपथपाओ मृदंग की तरह

उड़ चला है आज मन पतंग की तरह
बचपन की भोली उमंग की तरह

ज्ञान ध्यान ओहदों को छोड़ किसी दिन
मस्त होके गाओ मलंग की तरह

मर मर के जीने की चाह छोड़ दो
और जियो जीने के ढंग की तरह

जीवन को दर्शन का लेख मत कहो
जीवन है हास्य भरे व्यंग की तरह

खेलो गुलाल फाग साल में इक दिन
रंगों में मिल जाओ रंग की तरह

शाम को तनाव का चश्मा उतार कर
मेज थपथपाओ मृदंग की तरह

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