Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

रविवार, 20 जून 2010

गुब्बारे सिर्फ रोटी हैं

सड़क पर बेच रहा है गुब्बारे
एक छोटा बच्चा !
लाल हरे पीले गुब्बारे
गुलाबी बैंगनी नीले गुब्बारे
गोल गुब्बारे लम्बे गुब्बारे
और कुछ नए किस्म के
दिलनुमा गुब्बारे

मैं अब तक समझता था
गुब्बारे प्रतीक है
ख़ुशी का, दावत का, जन्मदिन का , सपनों का
लेकिन आज जब मैंने झाँका
उस बच्चे की उदास आँखों में
तो सारे माने बदल गए
वो  सब कुछ नहीं
जो मैं समझता था

गुब्बारे सिर्फ रोटी हैं
गुब्बारे सिर्फ पैसे हैं
गुब्बारों में भरी हवा
इस बच्चे के पेट से निकली लपटें हैं
जिन पर यह सेक रहा है
अपने लिए रोटियां

काश! सब कुछ बादल जाए
और ये गुब्बारे बन जाए
फिर से
नन्हे नन्हे सपने
इस बच्चे के लिए
सब बच्चों के लिए

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