Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

सोमवार, 14 जून 2010

चांदी रूप चमकीला नहीं करती

ओस की बूंदे कभी गीला नहीं करती
सूर्य की किरणे कभी पीला नहीं करती

आसमां के रंग से सागर लगे नीला
नील बदली जल कभी नीला नहीं करती

चांदनी का रंग चाँदी से नहीं बनता
और चांदी रूप चमकीला नहीं करती

स्वर्ण के बिन भी चमकते लोग चेहरे से
स्वर्ण की आभा ही दमकीला नहीं करती

3 टिप्‍पणियां: