Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

मंगलवार, 8 जून 2010

आईने में

अपना चेहरा जब भी देखा आईने में ,
कितना झूठा पाया खुद को आईने में .

झूठी शान दिखाता रहता दुनिया में ,
कितना हल्का खुद को लगता आईने में .

दुनिया कहती मुझको मैं कोई फ़रिश्ता हूँ ,
खुद को मैं क्यों पापी लगता आईने में .

अकड़ा फिरता हूँ ऊँची इज्जत की धुन में ,
बस नाटक सा करता दिखता आईने में .

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