Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

सोमवार, 17 मई 2010

कुछ पता नहीं

कल जीवन में क्या होना है कुछ पता नहीं
है आज रात सोना और कल फिर उठना है
उठना भी है या नहीं - हमें कुछ पता नहीं

कितनी आपाधापी में चलता जीवन है
जीने की खातिर मरता रहता ये तन है
जिस रोटी को पाने को हम लड़ते रहते
थाली में है, पर मुख में हो, कुछ पता नहीं

रोटी की बात नहीं, चिंता है बरसों की
प्राणों को खबर नहीं अगले कल परसों की
न होने वाली बातों से डरते रहते
जो होना ही है, उस डर का कुछ पता नहीं

पंछी को कस कर पकड़ा तो मर जाएगा
जब चाहा पिंजरे से उड़ के घर जायेगा
पंछी को उड़ने दो पंखों को मत छेड़ो
यह कितनी दूर चला जाए कुछ पता नहीं

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