Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

शनिवार, 17 अप्रैल 2010

वाणी

जीवन का मधुरतम अंग -वाणी
जीवन का क्रूरतम अंग - भी वाणी

जब प्रसव की वेदना से ,
आहत होती है माँ
पराकाष्ठा शारीरिक कष्ट की वहां ;
तभी कानों में पड़ती है
शिशु के रोने की आवाज
कष्ट का उसी क्षण बदल जाता अंदाज
वेदना के बीच खिल उठते हैं
पुष्प कितने मन में ,कितने तन में
बन जाती है ममता का चरम रूप
शिशु की पहली वाणी

घर गृहस्थी की चक्की में
पिस रहा होता है जीवन
दौड़ धूप , आपा -धापी और उलझन
बौखलाया सा मन ,तिलमिलाया सा तन
इसी बीच -
शिशु ने पहली बार कहा माँ
सारे कोलाहल के बीच जैसे
मंदिर की घंटी बज गयी
पीछे रह गयी बौखलाहट
गायब हुई तिलमिलाहट
चमत्कार हो गया
मन जैसे पिघल कर
प्यार प्यार हो गया

और किसी देवी के
जीवन में सब कुछ है
वैभव हैं तन मन के
साधन हैं जीवन के
शान शौकत , नौकर चाकर
ऐश आराम सारे पाकर
ऐसा कुछ हो गया
जिससे मन रो दिया
सारा ऐश्वर्य धरा रह गया
कानों में जैसे
गरम शीशा बह गया
आता जाता कोई
बाँझ उसे कह गया
वाणी की मार से दिल छलनी हो गया

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