Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

बेढंगी जिंदगी

हमने अजीब जीने का ,ये ढंग कर लिया
दुश्वारियों को खुद ही अपने संग कर लिया

खुसबू मेरे गुलों की है ,कोई दूसरा न ले
हमने चमन के रास्तों को तंग कर लिया

फूलों के तितलियों के रंग को जी न सके हम
दिल पे उदास स्याह हमने रंग कर लिया

औरों के इक मजाक से हम तिलमिला गए
औरों पे हमने जब भी चाहा व्यंग कर लिया

जो मिल गया उसी में ख़ुशी पा सके न हम
जो मिल न सका उन ग़मों को संग कर लिया

ढूँढा खुदा को मंदिरों की भीड़ भाड़ में
दिल के खुदा की बंदगी को बंद कर लिया

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